नदी किनारे का आशियाना,मतलब जीवन को मुसीबत में फंसाना

नदी अपना रास्ता कभी नहीं भूलती जब मनुष्य एक इंच भूमी के लिए अपनों से भिड जाता है तो नदी अपनी जमीन क्यों नहीं ले सकती है । थराली में जो मंजर देखने को मिला वो शायद यही बंया कर रही है।शांत प्राणी, नदी, एक बार फिर अपना रास्ता याद करने आई। उत्तरकाशी जनपद के धराली क्षेत्र में हालिया प्राकृतिक आपदा ने न सिर्फ घरों को उजाड़ा, बल्कि पुरानी चेतावनियों को भी नए सिरे से जीवित कर दिया।
बारिश के उस तूफानी दिन, जब आसमान चीख पड़ा और पहाड़ों से मलबा बहता चला आया, तब किसी बुज़ुर्ग की कही वो बात फिर से कानों में गूंजने लगी—
“नदी के पास घर मत बसाओ बेटा, वो अपना रास्ता कभी नहीं भूलती।
धराली, जहां कभी “रिवर-व्यू कॉटेज”, “माउंटेन फेस लॉज” और “सेल्फी स्पॉट्स” बसते थे, वहां अब कीचड़ और टूटी छतों की तसवीरें वायरल हो रही हैं। लोग कहते हैं—”सब खत्म हो गया… हाय, सब लुट गया!”
हमने जलधाराओं को अपने नक्शों से मिटा दिया, रेत को कंक्रीट से ढंक दिया, और बहती नदियों को शहरी सपनों में बदल दिया। पर जब वर्षा आई, तो नदी ने फिर से वो पुरानी फाइलें खोल दीं—वही नक्शे, वही रास्ते, वही चेतावनियां।
गांव के कोने में बैठे 78 वर्षीय शिवदयाल बिष्ट कहते हैं,
“हमने तो देखी हैं ये नदियां तब, जब वो सिर्फ पानी नहीं, पहचान थीं। आज के बच्चे सोचते हैं ये बस व्यू है, पर नदी कभी सजावट नहीं होती, वो जीवन भी है और विनाश भी…”
शायद इसी वजह से जब नदी लौटी, उसने हिंसा नहीं की, सिर्फ याद दिलाया कि
“मैं मेहमान नहीं, इस घाटी की मालकिन हूं…”
प्रशासन राहत और पुनर्निर्माण में जुटा है। NDRF और SDRF की टीमों ने अब तक सैकड़ों लोगों को सुरक्षित निकाला है। हेलीकॉप्टर से खाद्य सामग्री, दवाएं और पेयजल पहुंचाया जा रहा है। लेकिन सवाल यह है कि क्या हम फिर वही गलती दोहराएंगे?
अब समय है कि नई पीढ़ी नदियों को दुश्मन समझना छोड़ दे। जल को काबू में करने की बजाय उसके साथ संतुलन बनाना सीखें।