जंगली जानवरों से पहाड की खेतीको बचाने के लिए भी बने ठोस निति,छलका किसानों का दर्द
यमकेश्वर –आज हम खेती किसानी की बात करते हैं,खाश करके पहाड़ों की खेती की तो मेहनत चौगुनी और अन्न मुट्ठी भर,कारण कि जो बोया वो जंगली जानवरों के हक में चला जाता है।
आज किसानों के लिए कृषि विभाग द्वारा अनेक योजनाएं बनाई गई है हैं किन्तु पहाड़ों का कितने प्रतिशत किसान इन योजनाओं का लाभ ले पा रहे हैं ये सोचने वाली बात है।
सीढ़ीदार खेत में एक या दो मुट्ठी अनाज बो कर फिर निराई गुड़ाई करके जो अनाज मिलता है लाजमी है कि वो किसी अमृत से कम नहीं होगा।
लेकिन विडंबना ये है कि यहां का किसान बेबस है वो योजनाओं का लाभ कैसे ले क्योंकि कृषि विभाग ने योजना तो बनाईं हैं किन्तु पहाड़ों की खेती को जंगली जानवरों से बचाने का कोई योजना नहीं बनाई है जिससे पहाड़ों का किसान मजबूर हो जाता है खेती छोड़ने को, पहाड़ों में जीवन भी पहाड जैसा होता है। कितना बेबस है पहाड़ों का किसान जो खेती तो करना चाहता है,पर उस खेती की सुरक्षा के लिए उसके पास कोई विकल्प नहीं है।
आज कुछ लोगों से इस विषय पर बातचीत की तो अंदर का दर्द छलक आया।कारण की जब घर में कोई कमाने वाला ना हो और एक मात्र खेती और पशुपालन से ही घर चलाना हो एैसी स्थिति में आज का समय उनके लिए बहुत बडी चुनौती है।कारण कि गांव से ज्यादातर लोग पलायन कर चुके हैं।
आज का समय पहाड की खेती के लिए बहुत बडी चुनौती है। पहाड की खेती को जंगली जानवरों से बचाने के लिए भी ठोस नीति बननी चाहिए ये कहना है पहाड के किसानों का अगर पहाड़ों से पलायन रोकना है तो पहाह के दर्द को समझना होगा।